With the passing of generations and slow isolation from our own culture, here are some thoughts from a Professor, Writer, and Poet, Jayant Kumar, who shares his insight through his poem ‘Bhool Gaye’, the significance of embracing and cherishing our values, ethos and being humane.
While we embrace technological advancements, cultural integration, and modernization, we must respect, retain, value and take pride in our own culture.
।।भूल गए।।
ए बी सी डी तो याद रहा, अ आ इ ई भूल गए।
हिंदी में कहना याद रहा, हिंदी में लिखना भूल गए।
कविता लिखना तो याद रहा, संदेशा देना भूल गए।
ए बी सी डी तो याद रहा पर का खा गा घा भूल गए।।
भूल गए तो भूल गए कौन सी बड़ी बात है,
यदि आपका दिल साफ है तो सब कुछ माफ है।।
जब हो अधीन संचारों के, अपने विचार खुद भूल गए।
अधिकारों का तो याद रहा, कर्तव्यों को ही भूल गए।।
उन कार्यों का है मोल ही क्या, जब मानवता ही भूल गए।
निजी स्वार्थों को तो याद रखा, संवेदनशीलता भूल गए।।
आर्ट वह जो निज सुख से प्रेरित हो, स्वांतः सुखाय, स्वांतः हिताय।
डिजाइन वह जो जनकल्याण से प्रेरित हो, परिजन सुखाय परिजन हिताय
स्वांत: सुखाय तो याद रहा परिजन सुखाय ही भूल गए।
स्वांत: हिताय तो याद रहा परिजन हिताय पर भूल गए।।
स्वागत करना तो याद रहा वसुधैव कुटुंबकम भूल गए।।
भूल गए तो भूल गए कौन सी बड़ी बात है,
यदि आपका मन साफ है तो सब कुछ माफ है।।
विद्यार्थी शिक्षक अन्य अधिकारी है अलग नहीं पर एक इकाई
फिर क्यों है यह कोहराम मचा, क्या किसी ने साजिश रचा?
एक दूसरा पक्ष भी होता है जो अपनी सीमा में खोता है
यदि है हमको इसका आभास तो डालें इस पर भी प्रकाश
सन्यासी संग वस्त्र था एक, पर चूहों की थी उस पर टेक।
व्यथित देख उन्हें इस प्रकार, भक्तों ने दिया बिल्ली उपहार।।
बिल्ली के पोषण की इच्छा नेक, गाय बंधाई खूंटी टेक।
भूखी गया कौन चराए, ग्वाले को संग दियो लगाए।।
ग्वाले का भूख अब सरोकार, औरत घर लाने का विचार।।
सोचा! ग्वाले की क्या दरकार, कर लिया विवाह फिर इस प्रकार।
चूहे की समस्या ऐसी सुलझाई, छोड़ सन्यास, गृहस्थ को आए।
क्या इस कथा से कुछ सीखेंगे या अपना मूल यूं ही चुकेंगे।
यदि भूला कुछ तो माफ करें, अपने मन से इंसाफ करें ।
इस रचना का उद्देश्य यही संदेशा जाए तो जाए सही।।
हिंदी की स्मृति, स्मृति नहीं, जो जनादेश हो जाए यही।
भाषा तो केवल माध्यम है अभिव्यक्ति का एक साधन है।।
फिर क्यों एबीसीडी तो याद रहा और अ आ इ ई भूल गए।
फिर क्यों हिंदी में कहना याद रहा हिंदी में लिखना भूल गए
फिर क्यों कविता पढ़ना तो याद रहा, संदेशा देना भूल गए
फिर क्यों एबीसीडी तो याद रहा, क ख ग घ भूल गए ?
यदि भूलना है तो भूल प्रिए, पर भला है क्या ? और भूले क्या?
यह भूले से भी भूलें ना, जो भुला दिया वो भूल प्रिए।।
——— Jayant Kumar, Professor NIFT
भूलको सुधारा जा सकता है,चाहत होनी चाहिए